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ज़बूर Psalms 132

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1ऐ ख़ुदावन्द! दाऊद कि ख़ातिर उसकी सब मुसीबतों को याद कर;

2कि उसने किस तरह ख़ुदावन्द से क़सम खाई,

और या'क़ूब के क़ादिर के सामने मन्नत मानी,

3“यक़ीनन मैं न अपने घर में दाख़िल हूँगा,

न अपने पलंग पर जाऊँगा;

4और न अपनी आँखों में नींद,

न अपनी पलकों में झपकी आने दूँगा;

5जब तक ख़ुदावन्द के लिए कोई जगह,

और या'क़ूब के क़ादिर के लिए घर न हो।”

6देखो, हम ने उसकी ख़बर इफ़्राता में सुनी;

हमें यह जंगल के मैदान में मिली।

7हम उसके घरों में दाखि़ल होंगे,

हम उसके पाँव की चौकी के सामने सिजदा करेंगे!

8उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो!

तू और तेरी कु़दरत का संदूक़।

9तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों,

और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें।

10अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर,

अपने मम्सूह की दुआ ना — मन्जूर न कर।

11ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है;

वह उससे फिरने का नहीं:कि “मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।

12अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर,

जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें;

तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।”

13क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है,

उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है:

14“यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है;

मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है।

15मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा;

मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा

16इसके काहिनों को भी मैं नजात से मुलव्वस करूँगा

और उसके पाक बुलन्द आवाज़ से ख़ुशी के नारे मारेंगे।

17वहीं मैं दाऊद के लिए एक सींग निकालूँगा मैंने

अपने मम्सूह के लिए चराग़ तैयार किया है।

18मैं उसके दुश्मनों को शर्मिन्दगी का लिबास पहनाऊँगा,

लेकिन उस पर उसी का ताज रोनक अफ़रोज़ होगा।”